Friday, 18 August 2017

डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल (DNA)
परिचय-
डी. एन. ए. जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक अम्ल या डी एन ए कहते हैं। इसमें अनुवांशिक कूट निबद्ध रहता है। DNAअणु की संरचना घुमावदार सीढ़ी की तरह होती है।डीएनए की एक अणु चार अलग-अलग रास वस्तुवों से बना है, जिन्हे न्यूक्लियोटाइड कहते है| हर न्यूक्लियोटाइड एक नाइट्रोजन युक्त वास्तु है| इन चार न्यूक्लियोटाइडो को अडेनिन, ग्वानिन, थाइमिन और साइटोसिन कहा जाता है| इन न्यूक्लियोटाइडो से युक्त डिऑक्सीराइबोस नाम का एक शक्कर भी पाया जाता है| इन न्यूक्लियोटाइडो को एक फॉस्फेट की अणु जोड़ती है| न्यूक्लियोटाइडोके सम्बन्ध के अनुसार एक कोशिका के लिए अवश्य प्रोटीनों की निर्माण होता है| अतः DNAहर एक जीवित कोशिका के लिए अनिवार्य है|
Nucleoside- nitrogenous base + deoxi-ribos sugar
Nucleotide- nitrogenous base + deoxi-ribos sugar- phosphate group
          डीएनए आमतौर पर क्रोमोसोम के रूप में होता है| एक कोशिका में गुणसूत्रों के सेट अपने जीनोम का निर्माण करता है; मानव जीनोम 46 गुणसूत्रों की व्यवस्था में डीएनए के लगभग 3 अरब आधार जोड़े है| जीन में आनुवंशिक जानकारी के प्रसारण की पूरक आधार बाँधना के माध्यम से हासिल की है| उदाहरण के लिए, एक कोशिका एक जीन में जानकारी का उपयोग करता है जब प्रतिलेखन में, डीएनए अनुक्रम डीएनए और सही आरएनए न्यूक्लियोटाइडों के बीच आकर्षण के माध्यम से एक पूरक शाही सेना अनुक्रम में नकल है| आमतौर पर, यह आरएनए की नकल तो शाही सेना न्यूक्लियोटाइडों के बीच एक ही बातचीत पर निर्भर करता है जो अनुवाद नामक प्रक्रिया में एक मिलान प्रोटीन अनुक्रम बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| वैकल्पिक भानुमति में एक कोशिका बस एक प्रक्रिया बुलाया डीएनए प्रतिकृति में अपने आनुवंशिक जानकारी कॉपी कर सकते हैं|डी एन ए की रूपचित्र की खोज अंग्रेजी वैज्ञानिक जेम्स वॉटसन और फ्रान्सिस क्रिक के द्वारा सन १९५३ में किया गया था। इस खोज के लिए उने सन १९६२ में नोबेल पुरस्कार सम्मानित किया गया।
डी. एन. ए.संरचना-
पॉलीन्यूक्लियोटाइडश्रंखला की संरचना-
डीएनए या RNA की रासायनिक संरचना संक्षेप में निम्न है। न्यूक्लियोटाइड के तीन घटक होते हैं नाइट्रोजनी क्षार, पेंटोस शर्करा;RNA के मामले में रिबोस तथा डीएनए में डीआँक्सीरिबोज और एक फोस्फेट ग्रुप। नाइट्रोजनीक्षार दो प्रकार के होते है
प्यूरीन्स-एडेनीन व ग्वानिन व
पायरिमिडीन-साइटोसीन, यूरेसिल व थाइमीन।
साइटोसीन डीएनए व RNA दोनों में मिलता है जबकि थाइमीन डीएनए में मिलता है। थाइमीन के स्थान पर यूरेसील RNA में मिलता है। नाइट्रोजनी क्षार नाइट्रोजन ग्लाइकोसिडिक बन्ध द्वारा पेंटोस शर्करा से जुड़कर न्यूक्लियोसाइडबनाता है। जैसे एडीनोसीन या डीआँक्सी एडीनोसीन, ग्वानोसीन या डीआँक्सी ग्वानोलीन, साइटीडीन या डीआँक्सीसाइटीडीन व यूरीडीन या डीआँक्सी थाइमीडीन। जब फोस्फेट समूह फास्पोएस्टर बन्ध द्वारा न्यूक्लीयोसाइड के 5’हाइड्रोक्सील समूह से जुड़ जाता हैतब सम्बन्धित न्यूक्लियोटाइड्स;डीआँक्सी न्यूक्लियोटाइड्स उप-स्थित शर्करा के प्रकार पर निर्भर है। का निर्माण होता है। दो -न्यूक्लियोटाइड्स 3-5 फास्पोडाइस्टर बन्ध द्वारा जुड़कर डाईन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है। इस तरह से कई न्यूक्लियोटाइड्स जुड़कर एक पॉलीन्यूक्लियोटाइड्स श्रंखला का निर्माण करते हैं। इस तरह से निर्मित बहुलक के राइबोज शर्करा के 5 किनारे पर स्वतंत्र फोस्फेट समूह मिलता है जिसे पॉलीन्यू-क्लयोटाइड श्रंखला का 5 किनारा कहते हैं। ठीक इसी तरह से बहुलक के दूसरे किनारे पर राइबोज मुक्त 3हाइड्रोक्सील समूह से जुड़ा होता है।पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रंखलाका 3 किनाराकहते हैं। पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रंखला के आधार का निर्माण शर्करा व पफॉस्पेफट्स से होता है। नाइट्रोजनी क्षार शर्करा अंश से जुड़ा होता है जो आधारसे प्रक्षेपित होता है।
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          प्रेफडरीच मेस्चर ने 1869 में केद्रक में मिलने वाले अम्लीय पदार्थ डीएनए की खोज की थी। उसने इसका नाम न्यूक्लिनदिया। ऐसे लंबे संपूर्ण बहुलक को तकनीकी कमियों के कारण विलगित करना कठिन था, इस कारण से बहुत लंबे समय तक डीएनए की संरचना के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं थी। मौरिस विल्किंसन व रोजलिंड पैंफकलिनद्वारा दिए गए एक्स-रे निवर्तन आंकड़े के आधार पर 1953 में जेम्स वाट्सन व प्रफान्सिस त्रीक ने डीएनए कीसंरचना का द्विकुण्डली नमूना प्रस्तुत किया। उनकेप्रस्तावों में पॉलीन्यूक्लियोटाइडश्रंखलाओं के दो लडि़यों के बीच क्षार युग्मन की उप-स्थिति एक बहुत प्रमाणित श्रंखलाचेन थी। उपरोक्त प्रस्ताव द्विकुण्डली डीएनए के इर्विन चारगाफ के परीक्षण के आधार पर
भी था जिसमें इसने बताया कि एडनिन व थाइमिन तथा ग्वानिन व साइटोसीन के बीच अनुपातस्थित व एक दूसरे के बराबर रहता है। क्षार युग्मन पॉलीन्यूक्लियोटाइड श्रंखलाओं की एक खास विशेषता है। ये श्रंखलाए एक दूसरे के पूरक है इसलिए एक रज्जुक में -स्थित क्षार युग्मों के बारे जानकारीहोने पर दूसरी रज्जुक के क्षार युग्मों की कल्पना कर सकते हैं।
द्विकुण्डली डीएनए की संरचना की खास विशेषताए निम्न हैं
·       यह दो पॉलीन्यूक्लियोटाइडश्रंखलाओं का बना होता है जिसका आधारशर्करा-फोस्फेट का बना होता हैव क्षार भीतर की ओर प्रक्षेपी होता है।
·       दोनों श्रंखलाए प्रति समानांतर ध्रुवणता रखती है। इसका मतलब एक श्रंखला कोध्रुवणता 5से 3की ओरहोतोदूसरेकीध्रुवणता 3से 5कीतरहहोगी।
·       दोनों रज्जुकों के क्षारआपस में हाइड्रोजन बन्ध द्वारा युग्मित होकर क्षार युग्मक बनाते हैं। एडेनिन वथाइमिन जो विपरीत रज्जुकों में होते हैं। आपस में दो हाइड्रोजन बन्ध बनातेहैं। ठीक इसी तरह से ग्वानीन साइटोसलीन से तीन-हाइड्रोजन बन्ध द्वारा बंधा रहताहै जिसके पफलस्वरूप सदैव यूरीन के विपरीत दिशा में पीरीमिडन होता है। इससे कुण्डलीके दोनों रज्जुकों के बीच लगभग समान दूरी बनी रहती है।
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·       दोनों श्रंखलाए  दक्षिणवर्ती कुंडलित होती हैं।कुण्डली का पिच 3.4 नैनोमीटर ;एक नैनोमीटर एक मीटर का 10 करोड़वा भाग होता हैवह 10-9 मीटर के बराबर है। व प्रत्येक घुमाव में लगभग 10 क्षार युग्मक मिलते हैं। परिणामस्वरूपएक कुण्डली में एक क्षार युग्मक के बीच लगभग 0.34 नैनोमीटर की दूरी होती है।
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डी. एन. ए. प्रतिकृति
कोशिका विभाजन एक जीव विकसित करने के लिए आवश्यक हैलेकिन जब एक सेल कोशिका विभाजित होती है, तो विभाजन के फलस्वरूप उत्पन्न दोनों कोशिकाओं के जीनोम में मूल कोशिका के डीएनए की हूबहू प्रतिकृति बननी चाहिए। इसलिए डीएनए की द्विपट्टिका संरचना डीएनए प्रतिकृति के लिए एक सरल तंत्र प्रदान करती है। यहां, डीएनऐ के दो रेशे या पट्टिकाऐं अलग हो रही हैं और फिर एक पट्टिका के संपूरक डीएनए अनुक्रम डीएनए पोलीमरेज़ नामक एंजाइम द्वारा निर्मित किए जाते हैं। यह एंजाइम पूरक संयुक्ताधार युग्मन के माध्यम से सही आधार खोजने, और मूल संबंध द्वारा पूरक किनारा बनाती है। क्योंकि डीएनए पोलीमरॅसिस केवल 5' 3' की दिशा में विस्तार कर सकते हैं, द्विकुण्डल असमानांतर पट्टी की प्रतिकृति बनाने हेतु भिन्न प्रक्रिया होती है। इस प्रकार पुरानी गुणसूत्र पट्टी का आधार यह बताता है कि नई पट्टी पर क्या आधार रहेगा। और इस तरह नई कोशिका के डीएनए गुणसूत्र अपनी जनक कोशिका के गुणसूत्र की हूबहू प्रतिकृति होते हैं।